कौन है पर्दे के पीछे का हीरो नम्बर वन आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में रातो रात नहीं ऊग गए अफीम के पौधे
बैतूल से रामकिशोर पंवार की रिपोर्ट
बैतूल,सतपुड़ाचल में बसे मध्यप्रदेश - महाराष्ट्र का सीमावर्ती आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिला अपने देशी महुआ और उसकी पहली धार की हाथ भटट्ी की शराब के लिए जाना जाता था। थोड़ी पहचान मिली जब दूर परदेश में बैतूल के महुआ के फलो से बनी काफी - चाय - पेय प्रदार्थ को लेकर गोरे अग्रेंजो में उत्सुकता देखने को मिली। बीते कुछ महीनो से बैतूल जिला नशा के कारोबार का केन्द्र बनते जा रहा था। जिले में छत्तिसगढ़ से बड़े पैमाने पर आने वाला गांजा की खपत के बाद अचानक जिले में अफीम की खेती का भाड़ा फूटना सबसे बड़ा चौकान्ने वाला घटनाक्रम है। पूर्व पुलिस कप्तान सुश्री सिमला प्रसाद ने जिले में राजस्थान से जुड़े एक नेटवर्क को ध्वस्त किया था लेकिन इस बार तो जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के खेतो में गंाजा के पौधो की जगह अफीम के डोडे दिखाई पडऩे लगे है। कोई यह कहे कि अब जाकर खबर लगी तो वह सरासर झूठ का सहारा ले रहा है क्योकि रातो रात खेतो में अफीम के पौधो नहीं ऊग जाते है..? कोई माने या न माने लेकिन सच्चाई कहीं न कहीं जिले की पुलिस छुपाने का प्रयास कर रही है। मंगलवार को सारणी थाना क्षेत्र के धंसेड गांव में करीब एक एकड़ जमीन पर अफीम के पौधे मिले हैं। पुलिस ने एक व्यक्ति को हिरासत में लिया है। मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने धंसेड में कार्रवाई की। यहां मिली खेती में कुछ छोटे और कुछ बड़े पौधे पाए गए हैं। इससे पहले रानीपुर थाना क्षेत्र के सड़कवाड़ा में भी एक एकड़ में अफीम की खेती पकड़ी गई थी। इस घटना के बाद पुलिस ने सभी थाना क्षेत्रों में कोटवारों और मुखबिर तंत्र को सक्रिय कर दिया था। उन्हें इस तरह की गतिविधियों पर नजर रखने के निर्देश दिए गए थे। पुलिस अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए नई कहानी लेकर आई है जिसके अनुसार, इस अवैध खेती में राजस्थान के एक गिरोह का हाथ हो सकता है। हालांकि पुलिस कह रही है कि वह मामले की गहनता से जांच कर रही है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और न हो रहा है कि जिले में माफिया चाहे वह देशी महुआ शराब , विदेशी मदीरा से जुड़ा हुआ हो या फिर अफीम - गांाजा - हीरोइन - जैसे मादक नशा से जुड़ा माफिया अपने काम - काज में तीन फेक्टर को प्राथमिकता देता है। जानकार सूत्रो का कहना है कि नशे के कारोबार में त्रिपल एम फेक्टर काम कर रहा है। जिले में अनुसूचित जन जाति - अनुसूचित जाति की महिला - पुरूष को आगे करके माफिया सगगना जो कि एम फैक्टर का सबसे बड़ा सरगना है उसके द्वारा अपने पूरे कारोबार(गैंग) में ऐसे लोगो को जोड़ता है,जो मरने - मारने को उतारू रहते है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के ग्रामीणों (महिला - पुरूषो) को अच्छा - खासा प्रलोभन देकर उनकी ही जमीन पर अफीम जैसे मादक प्रदार्थो की खेती के लिए राजी करते हैं। इसके लिए वे प्रति एकड़ एक मुश्त बड़ी राशि भी दी जा रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि दो दिन पूर्व बैतूल अचानक आए आई जी को इस बारे में जानकारी मिली थी जिसके चलते बड़े आला अफसरो के द्वारा दी गई हिदायतो के बाद अचानक बैतूल जिले की पुलिस को याद आ गई कि कहां - कहां क्या - क्या हो रहा है। पुलिस ने उन्ही मुखबीरो से मिली जानकारी मिलने के बाद कई टीम अलग - अलग क्षेत्र में इस गैंग की तलाश में जुटी है। आशंका है कि घोड़ाडोंगरी सारणी क्षेत्र में कई और जगह भी अफीम की खेती मिल सकती है। फिलहाल इस मामले में पुलिस ने एक व्यक्ति को हिरासत में लिया है और मामले की जांच की जा रही है। उल्लेखनीय है कि बैतूल में पुलिस ने अवैध अफीम की बड़ी खेती का भंडाफोड़ किया है। रानीपुर थाना क्षेत्र के सड़कवाड़ा गांव में मुखबिर की सूचना पर की गई कार्रवाई में एक एकड़ जमीन पर अफीम के लाखों पौधे मिले हैं। खेत मालिक भिखारीलाल और एक अन्य को हिरासत में लिया गया है। एएसपी कमला जोशी और एसडीओपी सारणी रोशन जैन के नेतृत्व में की गई इस कार्रवाई में बैतूल कोतवाली समेत कई थानों की पुलिस टीम शामिल थी। मौके पर पाई गई अफीम की फसल में कुछ पौधों में फल लग चुके हैंए जबकि कुछ अभी फूल की स्थिति में हैं। वर्तमान में इस खेती की कीमत दस लाख रुपए से अधिक आंकी गई है, लेकिन मार्च तक फसल के पूरी तरह पकने पर यह कीमत करोड़ों रुपए तक पहुंच सकती थी। पुलिस ने मजदूर लगवा कर फसल कटवाना शुरू कर दिया है। पौधों के 20 - 20 के बंडल बनवाए जा रहे है। जिसके बाद पौधों की गिनती की जाएगी। इनकी तादाद लाखों में हो सकती है। राजस्व विभाग की टीम भी मौके पर पहुंचकर जमीन का सर्वे कर रही है और फसली दस्तावेजों की जांच कर रही है।पुलिस आरोपी से पूछताछ कर रही है कि वह कब से यह अवैध खेती कर रहा था और इस नशीले पदार्थ की खरीद - बिक्री के लिए किन - किन लोगों से उसका संपर्क था। प्रारंभिक तौर पर जानकारी मिली है कि खेत मालिक ने यह खेत चोपना इलाके के किसी व्यक्तिको ठेके पर दिया हुआ है। पुलिस उसकी भी तलाश कर रही है। जानकारों के मुताबिक अफीम की खेती के लिए ठंडा मौसम चाहिए। जब फसल में डोडा आ जाता है, उस समय हल्की गर्मी की जरूरत पड़ती है। गर्मी से डोडे को चीरा लगाकर दूध निकाला जाता है। यह दूध जब रात भर में जम जाता है, तब डोडे के आसपास उसे कलेक्ट कर लेते हैं। इस दौरान एक डोडे से सौ से डेढ़ सौ ग्राम अफीम निकल जाती है। किसी - किसी पौधे में यह वजन 200 ग्राम भी हो जाता है। आमतौर पर यह मंदसौर, नीमच, राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ क्षेत्र, मध्यप्रदेश के मालवा बेल्ट में उगाई जाती है, जिसके लिए सरकार की अफीम नीति बनी हुई है। सरकारी तौर पर इसकी कीमत 1800 से 2500 रुपए प्रति किलो हैए जबकि खुले बाजार में यह 80 हजार रुपए से डेढ़ से तीन लाख रुपए किलो तक बिकती है। पुलिस भी आमतौर पर इसकी कीमत 2 लाख रुपए किलो आंकती है। पंजाब के तस्कर इसे कालाबाजार में भी खरीदते हैं। हाल ही में अफीम की खेतीबाड़ी के बहुचर्चित प्रकरण में पुलिस ने खेत मालिक भिखारी लाल को पकड़ा। जबकि, पुलिस को फरार आरोपी सोनू बढ़ाई की तलाश है। एसडीओपी रोशन जैन ने बताया कि इस खेत में की गई जांच में पौधों की संख्या 50 हजार और उसका कुल वजन साढ़े 26 क्विंटल निकला है। जिसकी अनुमानित कीमत 45 लाख रुपए है। पुलिस ने यहां मजदूरों की मदद से 20 - 20 पौधे के बंडल बंधवाकर इसका नाप करवाया। इस पूरे मामले की जांच और बाकी जानकारी सोनू की गिरफ्तारी पर ही टिकी है, जो फिलहाल फरार है।
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