रायबरेली पुलिस पर दुष्कर्म के मामले को दबाने का आरोप, पीड़िता का बयान भी किया दरकिनार
रायबरेली। जिले में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की पुलिस अधीक्षक की तमाम चेतावनियों के बावजूद, डलमऊ पुलिस पर गंभीर आरोप लगे हैं। एक दुष्कर्म के प्रयास के मामले में पुलिस ने कानूनी नियमों को ताक पर रखकर न सिर्फ पीड़िता के बयान को नजरअंदाज किया, बल्कि आरोपी लेखपाल को बचाने के लिए मनगढ़ंत कहानियां गढ़ने का भी आरोप है।
क्या है मामला और पुलिस की कार्रवाई?
मामला चक मलिक भीटी गांव का है, जहां ऊंचाहार तहसील में तैनात लेखपाल पंकज वर्मा, रिंकू लोध और एक अन्य व्यक्ति पर एक महिला ने 10 जुलाई 2025 को दुष्कर्म के प्रयास और मारपीट का आरोप लगाया था। पीड़िता का कहना है कि रात में ये लोग उसके घर में घुस आए थे।
शिकायत के बावजूद, पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज नहीं की। पीड़िता का आरोप है कि पुलिस ने उसकी तहरीर बदलकर मामले को सिर्फ मारपीट की धाराओं में पंजीकृत कर दिया। इस पर पीड़िता ने पुलिस अधीक्षक और जिलाधिकारी से शिकायत की।
पुलिस की रिपोर्ट पर उठे सवाल
जब आईजीआरएस (IGRS) पर शिकायत की गई, तो पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें लिखीं:
* "अच्छे संबंध" का तर्क: पुलिस ने लिखा कि आरोपी रिंकू लोध और पीड़िता के बीच "अच्छे संबंध" थे, और इसी वजह से मारपीट हुई। इस पर पीड़िता सवाल उठाती है कि अगर संबंध अच्छे थे तो मारपीट किस बात की हुई?
* "रंजिश" का दावा: पुलिस ने यह भी कहा कि पंकज वर्मा की पत्नी से पीड़िता के अच्छे संबंध हैं और चूंकि पंकज वर्मा का उसकी पत्नी के साथ मुकदमा चल रहा है, इसलिए पीड़िता ने रंजिशवश उसका नाम लिखवाया है।
यह तर्क तब और खोखला लगने लगता है जब पीड़िता बताती है कि घटना के बाद खुद लेखपाल की पत्नी 112 नंबर की पुलिस लेकर उसके घर आई थी, यह जानने के लिए कि क्या उसका पति पंकज वर्मा सच में वहां आया था।
कानून की अनदेखी और ग्रामीण गवाहों पर संदेह
कानून स्पष्ट कहता है कि दुष्कर्म के प्रयास जैसे मामलों में पीड़िता का बयान ही पर्याप्त होता है और तहरीर मिलते ही तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। इसके बाद मेडिकल और मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज होता है। लेकिन इस मामले में पुलिस ने घटना के एक सप्ताह बाद सिर्फ मारपीट की धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की।
पुलिस का दावा है कि गांव के कुछ लोगों ने बयान और आधार कार्ड देकर यह साबित किया है कि मामला झूठा है। इस पर पीड़िता का तर्क है कि रात 10 बजे की घटना के समय गांव के लोग उसके घर के अंदर क्या कर रहे थे? उनका आरोप है कि ये गवाह भी साजिश में शामिल हो सकते हैं। पीड़िता ने जिलाधिकारी से सभी गवाहों से पूछताछ करने की मांग की है, क्योंकि रात 8 बजे के बाद गांव में सन्नाटा छा जाता है।
पीड़िता की मांग और भविष्य की चिंता
पीड़िता ने जिलाधिकारी से इस मामले की जांच किसी अन्य थाने या वरिष्ठ अधिकारी से करवाने की मांग की है। उसे डर है कि आरोपी और गवाह मिलकर उस पर हमला कर सकते हैं। उसका यह भी कहना है कि पुलिस ने एक अज्ञात व्यक्ति के बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी, जो इस घटना में शामिल था। पीड़िता को शक है कि यही वह व्यक्ति हो सकता है जो आरोपियों को बचाने के लिए गवाहों को पुलिस के सामने पेश कर रहा है।
यह मामला दिखाता है कि कैसे सत्ताधारी लोगों के दबाव में आकर पुलिस कानून को ताक पर रख देती है और न्याय के लिए संघर्ष कर रही एक महिला को और भी ज्यादा प्रताड़ित करती है।
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